kailali

Thursday 6 September 2012

चाहता हूँ


हजारों रात का जागा हूँ सोना चाहता हूँ अब ,
तुझे मिलके मैं ये पलकें भिगोना चाहता हूँ अब ,
बहुत ढूंढा है तुझ को खुद में,इतना थक गया हूँ मैं ,
कि खुद को सौंप कर तुझ को,मैं खोना चाहता हूँ मैं ...."

Neeraj sapkota sahajpur 7 bayala kailali nepal

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